विवाह
दण्डपाणि नाम का एक शाक्य था । यशोधरा उसकी लडकी थी अपने सौन्दर्य और ' शील ' के लिये वह प्रसिद्ध थी। यशेधरा अपने सोलहवें वर्ष में पहुँच गई थी और दण्डपाणि को उसके विवाह की चिन्ताने आ घेरा था । प्रथा के अनुसार दण्डपाणि ने अपने सभी पड़ोसी देशो ' के तरूणों को अपनी लडकी के ' स्वयंवर ' में सम्मिलित होने का निमंत्रण भेजा । सिद्धार्थ गौतम के नाम भी एक निमंत्रण भेजा गया था । सिद्धार्थ गौतम का भी सोलहवाँ वर्ष पूरा हो चुका था । उसके माता - पिता भी उसकी शादी के लिये वैसे ही चिन्तित थे । उन्होंने उसे ' स्वयंवर ' में जाने को और यशोधरा का ' पाणि - ग्रहण ' करने को कहा । उसने अपने माता - पिता का कहना माना । आगत तरूणों में से यशोधरा ने सिद्धार्थ - गौतम को ही चुना । दण्डपाणि बहुत प्रसन्न नही था । उसे उन दोनो के ' दाम्पत्य जीवन सफलता में सन्देह था । उसे लगता था कि सिद्धार्थ को तो साधु - सन्तो की संगति ही अच्छी लगती है । उसे तो एकान्त प्रिय है । वह एक अच्छा सद्गृहस्थ कैसे बन सकेगा ?
यशोधरा सिद्धार्थ गौतम के अतिरिक्त और किसी दूसरे से विवाह न करना चाहती थी । उसने अपने पिता से पूछा क्या साधु - सन्तों की संगति को अच्छा समझना अपराध है ? यशोधरा का ऐसा ख्याल नही था । यशोधरा की मां को जब मालूम हुआ कि यशोधरा सिद्धार्थ गौतम के अतिरिक्त और किसी दूसरे से विवाह करना नही चाहती , इसने दण्डपाणि से कहा कि उसे राजी हो जाना चाहिये । दण्डपाणि राजी हो गया। गौतम के प्रतिद्वन्द्वी निराश ही नहीं हुए बल्कि उन्हें लगता था कि उनका अपमान हो गया है । उन्हें लगता था कि कम से कम उनके प्रति ' न्याय ' करने के लिये ही यशोधरा को चाहिये था कि ' चुनाव ' करने से पहले किसी न किसी तरह से सबकी परीक्षा लेती । कुछ समय तो वह चुप रहे । उनका विश्वास था कि दण्डपाणि यशोधरा को गौतम का चुनाव ही न करने देगा । उनका उद्देश्य यू ही पूरा हो जायेगा । लेकिन जब उन्होंने देखा कि दण्डपाणि असफल रहा है , उन्होने हिम्मत से
काम लिया और इस बात की मांग की कि ' लक्ष्यवेध ' की एक परीक्षा ' होनी ही चाहिये । ' दण्डपाणि ' को स्वीकार करना पड़ा । पहले तो सिद्धार्थ इसके लिये तैयार न था । लेकिन , उसके सारथी , छत्र ने उसे समझाया कि यदि वह अस्वीकार करेगा तो यह उसके लिये , उसे परिवार के लिये तथा सबसे बढ़कर यशोधरा के लिये ही बड़ी लज्जा की बात होगी । सिद्धार्थ गौतम के मन पर इस तर्क का बड़ा प्रभाव पडा । उसने उस ' परीक्षण ' में सम्मिलित होना स्वीकार किया ।
भगवान बुद्ध का विवाह |
' परीक्षण ' आरम्भ हुआ । प्रत्येक प्रतिद्वन्द्वी ने अपना - अपना कौशल दिखाया । सबके अन्त में गौतम की बारी थी । किन्तु उसी का लक्ष्य - बेध ' सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हुआ । इसके बाद विवाह हुआ । शुद्धोदन और दण्डपाणि दोनों को बड़ी प्रसन्नता थी । इसी प्रकार यशोधरा और महाप्रजापति भी बड़ी प्रसन्न थी । विवाह हो चुकने के काफी समय बाद यशोधरा ने एक पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम राहुल रखा गया ।
पुत्र के संरक्षण के लिये पिता की योजना
राजा प्रसन्न था कि पुत्र का विवाह हो गया और वह गृहस्थ बन गया , किन्तु साथ ही असित ऋषि की भविष्यवाणी भूत की तरह उसका पीछा कर रही थी । उस भविष्यवाणी को पूरा न होने देने के लिसे उसने सोचा कि सिद्धार्थ गौतम को ' काम - भोगो के बंधन से अच्छी तरह से बाँध दिया जाय । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये शुद्धोदन ने अपने पुत्र के लिये तीन महल बनवाये - एक ग्रीष्म ऋतु में रहने के लिये , दूसरा वर्षा ऋतु में रहने के लिये और एक तीसरा शीत ऋतु में रहने के लिये । उसने इन महलों को हर तरह के भोगविलास के साधनों से सुसज्जित किया । हर महल के गिर्द एक - एक सुन्दर बाग था जिसमें नाना तरह के फूलों से लदे हुए पेड़ थे । अपने पुरोहित उदायी के परामर्श से उसने निश्चय किया कि कुमार के लिये एक अन्तःपुर ' की व्यवस्था करनी चाहिये , जहाँ सुन्दरियों की कमी न हो । शुद्धोदन ने तब उदायी को कहा कि वह उन षोडशियों को संकेत कर दे कि वे कुमार का चित्त जीतने का प्रयास करें । उदायी ने सुन्दरियों को इकट्टा कर कुमार का चित्त लुभाने का संकेत ही नही किया , विधि भी बताई । उन्हें सम्बोधित करके उसने कहा - " आप सब इस तरह की कला में दक्ष है , । आप सब अपने कोशल में है । आप सबको रागरंजित चित्त की भाषा कर अच्छा परिचय है । आप सब सुन्दर है ? आकर्षक है । आप सब अपने कोशल में है । " आप अपने चातुर्य से उन ऋषि - मुनियों को भी जीत सकती है जो काम जित् माने जाते है । आप उन देवताओं को भी जीत सकती है , जिन्हें केवल दिव्यलोक की अप्सराएँ ही लुभा सकती है । " अपनी कला , अपनी चतुराई , अपने आकर्षण से पुरुष की तो बात ही क्या , आप स्त्रियों तक को मोह ले सकती है । " अपने - अपने क्षेत्र में आप सब इतनी कुशल है कि आप सबके लिये कुमार को कामरुपी रज्जु में बांध कर अपने वश में कर लेना किसी भी तरह कठीन नही हो सकता । " स्वागत वधुओं को - जिनकी आंखो पर लाज - शर्म का पर्दा पड़ा रहता है - तो यह शोभा देता है कि वे संकोच से काम लें । आप सबको नहीं । " निस्सन्देह यह वीर महान् है । लेकिन इससे तुम्हें क्या । स्त्री का बल भी तो महान् होता है । यही तुम्हारा दृढ़ संकल्प होना चाहिये । " पुराने समय में काशी की एक वेश्या ने एक ऋषि को पथ - भ्रष्ट कर दिया था और उसे अपने पैरो में लिटाया था । " और उस महान् ध्यानी प्रसिद्ध विश्वामित्र को घृताची नाम की अप्सरा ने दस वर्ष तक जंगल में बन्दी बनाकर रखा था । " इस प्रकार के अनेक ऋषि - मुनियों को स्त्रियाँ रास्ते पर ले आई है । इस कुमार ने तो अभी तारुण्य के प्रथम - प्रहर में पैर ही रखा है । इसका तो कहना ही क्या ? जब यह ऐसा है तो तुम निधड़क होकर प्रयास करो ताकि राज्य परिवार की परम्परा बनी रहे । सामय स्त्रियाँ सामान्य आदमियो का वशीभूत करती है , किन्तु धन्य है वे जो असाधारण मनुष्यों को वशीभूत करती हैं ।
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