महामाया की मृत्यु
पाचवे दिन नामकरण संस्कार किया गया । बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया । उसका गोत्र गौतम था । इसीलिये जनसाधारण में वह सिद्धार्थ गौतम से प्रसिद्ध हुआ । बालक के जन्म की खुशियाँ और उसके नामकरण की विधियाँ अभी समाप्त नहीं हुई थी कि महामाया अचानक बीमार पड़ी और उसके रोग ने गम्भीर रूप धारण कर लिया । अपना अन्म समय निकट आया जान उसने शुद्धोदन और प्रजापति को अपनी शय्या के समीप बुलाया और कहा - " मुझे विश्वास है कि असित ने मेरे बच्चे के बारे में जो भविष्यवाणी की है , वह सच्ची निकलेगी । मुझे यही अफसोस है कि मै इस वाणी को पूरा हुआ न देख संकूगी । " प्रजापति ! मै अपना बच्चा तुम्हें सौंप जाती हूँ । मुझे विश्वास है कि उसके लिये तुम उसकी माँ से भी बढ़कर होगी । " मेरा बालक शीघ्र ही मातृ - हीन बालक हो जायेगा । लेकिन मुझे इराकी तनिक चिन्ता नहीं है कि मेरे बाद यथायोग्य विधि से उसका लालन - पालन नहीं होगा । " अब दुखी न हो । मुझे मरने दें । मेरा समय आ पहुँचा है । यम - दूत मेरी प्रतीक्षा कर रहे है । इतना कहते कहते महामाया ने अन्तिम सांस ले ली । शुद्धोदन और प्रजापति दोनों को ही बड़ा दुख हुआ । दोनो फूट - फूट कर रोने लगे । जब सिद्धार्थ की माता का देहान्त हुआ तो उसकी आयु केवल सात दिन की थी । सिद्धार्थ का एक छोटा भाई था । उसका नाम था नन्द । वह शुद्धोदन का महाप्रजापति से उत्पन्न पुत्र था । उसके ताया - चाचा की भी कई सन्तानें थी । महानाम और अनुरुद्ध शुक्लोदन के पुत्र थे तथा आनन्द अमितोदन के । देवदत्त उसकी बुआ अमिता का पुत्र था । महानाम सिद्धार्थ की अपेक्षाबड़ा था और आनन्द छोटा । सिद्धार्थ उनके साथ खेलता - खाताबड़ा हुआ ।
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