Sunday, April 26, 2020

बुद्ध का जन्म

जन्म

    सिद्धार्थ गौतम ने शुद्धोदन के घर में जन्म ग्रहण किया था । उनके जन्म की कया इस प्रकार है । शाक्य - राज्य के लोग आषाढ़ के महीने में एक महोत्सव मनाया करते थे । इस उत्सव में क्या राजा , क्या प्रजा सभी सम्मिलित होते थे । सामान्य रूप से यह महोत्सव सात दिन तक मनाया जाता था । एक बार महामाया ने इस उत्सव को बड़े ही आमोद - प्रमोद के साथ बद्दी ही शान - शौकत के साय , फूलो के साथ और सुगन्धियों के साथ मनाने का निश्चय किया । हाँ उसमें सुरामेरय आदि नशीली वस्तुओं का सर्वधा परित्याग था । सातवें दिन वह प्रातःकाल उठी । सुगन्धित जल से स्नान किया । चार लाख कार्षापणों का दान दिया । अच्छे से अच्छे गहने - कपड़े पहने । अच्छे से अच्छे खाने खाये । व्रत रखे । तदनन्तर वह खूब सजे - सजाये शयानागार में सोने के लिये चली गई । उस रात शुद्धोदन और महामाया निकट हुए और महामाया ने गर्भ धारण किया । राजकीय शय्या पर पड़े उसे नीद आ गई । निद्रा - ग्रस्त महामाया ने एक स्वप्न देखा । उसे दिखाई दिया कि चतुर्दिक महाराजिक देवता उसकी शय्या को उठा ले गये हैं और उन्होने उसे हिमवन्त प्रदेश में एक शाल - वृक्ष के नीचे रखा दिया है । वे देवता पास खड़े है। तब चतुर्दिक महाराजिक देवताओं की देवियां वहां आई और उसे उठाकर मानसरोवर ले गई । उन्होने उसे स्नान कराया , स्वच्छ वस्त्र पहनाये , सुगन्धियों का लेप किया और फूलों से ऐसा और इतना सजाया कि वह किसी दिव्यात्मा का स्वागत कर सकें । तब सुमेध नाम का एक बोधिसत्व उसके पास आया और उसने प्रश्न किया , " मैने अपना अन्तिम जन्म पृथ्वी पर धारण करने का निश्चय किया है , क्या तुम मेरी माता बनना स्वीकार करोगी? उसका उत्तर था - " बड़ी प्रसन्नता से । " उसी समय महामाया देवी की आँख खुल गई । 

       दूसरे दिन महामाया ने शुद्धोदन से अपने स्पवन की चर्चा की । इस स्वप्न की । व्याख्या करने में असमर्थ राजाने स्वप्न - विद्या में प्रसिद्ध आठ ब्राह्मणों को बुलावा भेजा । उनके नाम थे राम , ध्वज , लक्ष्मण , मन्त्री , कोड भोज , सुयाम और सुदत्त । राजा ने उनके योग्य स्वागत की तैयारी की । उसने जमीन पर पुष्पवर्षा कराई और उनके लिये सम्मानित आसन बिछयायें । उसने ब्राह्मणों के पात्र चांदी - सोने से भर दिये और उन्हें घी , मधु , शक्कर बढ़िया चावल दूध से पके पकवानों से संतर्पित किया । जब ब्राह्मण खा - पीकर प्रसन्न हो गये , शुद्धोदन ने उन्हे महामाया का स्वप्न कह सुनाया और पूछा - " मुझे इसका अर्थ बताओं  " ब्राह्मणों का उत्तर था , " महाराज | निश्चिन्त रहें । आपके यहाँ एक पुत्र होगा । यदि वह घर में रहेगा तो वह चक्रवर्ती राजा होगा ; यदि गृह - त्याग कर संन्यासी होगा । तो वह बुद्ध बनेगा - संसार के अन्धकार का नाश करने वाला । "  पात्र में तेल धारण किये रहने की तरह महामाया बोधिसत्व को दस महीने तक अपने गर्भ में धारण किये रही । समय समीप आया जान उसने अपने मायके जाने की इच्छा प्रकट की । अपने पति को सम्बोधित करके उसने कहा - " मैं अपने मायके देवदह जाना चाहती हूँ । शुद्धोदन का उत्तर था - " तुम जानती हो कि तुम्हारी इच्छा की पूर्ति होगी । " कहारों के कन्धो पर ढोई जाने वाली सुनहरी पालकी में बिठया कर अनेक सेवक - सेविकाओं के साथ शुद्धोदन ने महामाया को उसके माय भिजवा दिया ।  देवदह के मार्ग में महामाया को शाल - वृक्षो के एक उद्यान - वन में से गुजरना था , जिसके कुछ वृक्ष पुष्पित थे कुछ अपुष्पित । यह लुम्बिनी - वन कहलाता था । जिस समय पालकी लुम्बिनी - वन से गुजर रही थी , सारा लुम्बिनी - वन दिव्य चित - लता की तरह अथवा किसी प्रतापी राजा के सुसज्जित बाजार जैसा प्रतीत होता था । जह से वृक्षों की शाखाओं के छोर तक पेड़ फलो और फूलों से लदे थे । नाना रंग के भ्रमर - गण गुजार कर रहे थे । पक्षी चहचहा रहे थे । यह मनोरम दृश्य देखकर महामाया के मन में इच्छा उत्पन्न हुई कि वह कुछ समय वहाँ रहे और क्रीडा करे । उसने पालकी ढोने वालों को आज्ञादी कि वह उसकी पालकी को शाल - उद्यान में ले चले और वहाँ प्रतीक्षा करें । महामाया पालकी से उतरी और एक सुन्दर शाल - वृक्ष की ओर बड़ी । मन्द पवन वह रहा था , जिससे वृक्ष की शाखायें ऊपर - नीचे हिल डोल रही थी । महामाया ने उनमें से एक को पकड़ना चाहा । भाग्यवश एक शाखा काफी नीचे झुक गई । महामाया ने पंजों के बल खड़ी होकर उसे पकड़ लिया। तुरंत शाखा ऊपर की ओर उठी और उसका हल्का सा झटका लगने से महामाया को प्रसव - वेदना आरम्भ हुई । उस शाल - वृक्ष की शाखा पकड़े खड़े ही खड़े महामाया ने एक पुत्र को जन्म दिया । 
बुद्ध का जन्म, भगवान गौतम बुद्ध का जन्म
बुद्ध का जन्म

    
     ५६३ ई. पु. में वैशाख पूर्णिमा के दिन बालक ने जन्म ग्रहण किया । शद्धोदन और महामाया का विवाह हुए बहुत समय बीत गया था । लेकिन उन्हें कोई सन्तान नही हुई थी । आखिर जब पुत्र - लाभ हुआ तो न केवल शुद्धोदन आर उसक परिवार द्वारा बल्कि सभी शाक्यों द्वारा पुत्र जन्मोत्सव बड़ी ही शान - बान और बड़े हा ठाठ - वाट के साथ अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक मनाया गया । बालक के जन्म के समय अपनी बारी से , शद्धोदन पर कपिलवस्तु का शासन करने की जिम्मेदारी थी । वह ' राजा ' कहलाया , और इसीलिये स्वाभविक तौर पर बालक भी राजकुमार । 

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