कुल
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर भारत सर्व - प्रभुत्व सम्पन्न एक राज्य न था । देश अनेक छोटे बड़े राज्यों में बँटा हुआ था। इनमें से किसी राज्य पर एक राजा का अधिकार था , किसी किसी पर एक राजा का अधिकार न था । राज्य किसी एक राजा के अधीन थे उनकी संख्या सोलह थी । उनके नाम थे अंग , मगध , काशी , कौशल , वज्जि ( वृज्जि ) , मल्ल , चेदि , वत्स , कुरू , पत्रचाल , मत्स्य , सौरसेन , अष्मक , अवन्ति , गन्धार तथा कम्बोजा। जिन राज्यों में किसी एक ' राजा ' का आधिपत्य न था , वे थे कपिलवस्तु के शाक्य , पावा तथा कुसीनारा के मल्ल , वैशाली के लिच्छवि , मिथिला के विदेह , रामगाम के कोलिये , अल्लकप्प के बुलि , केसपुत्त के कालाम, कलिंग , पिप्पलवन के मौर्य , तथा भळा ( भर्ग ) जिनकी राजधानी सिसुमारगिरी थी । जिन राज्यों पर किसी एक ' राजा ' का अधिकार था वे जनपद कहलाते थे और जिन राज्यों पर किसी एक ' राजा ' का अधिकार न था वे ' संघ ' या ' गण ' कहलाते थे । कपिलवस्तु के शाक्यों की शासन - पद्धति के बारे में हमें विशेष जानकारी नहीं है । हम नहीं जानते कि वहाँ प्रजातन्त्र था अथवा कुछ लोगो का शासन था। इतनी बात हम निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि शाक्यों के जनतन्त्र में कई राज - परिवार थे और वे एक दूसरे के बाद क्रमश: शासन करते थे । राज - परिवार का मुखिया राजा कहलाता था । सिद्धार्थ गौतम के जन्म के समय शुद्धोदन की ' राजा ' बनने की बारी थी । शाक्य राज्य भारत के उत्तर - पूर्व कोने में था । यह एक स्वतन्त्र राज्य था । लेकिन आगे चलकर कोशल - नरेश ने इसे अपने शासन - क्षेत्र में शामिल कर लिया था । इस ' अधिराजिक - प्रभाव - क्षेत्र ' में रहने का परिणाम यह था कि कोशल - नरेश की स्वीकृति के बिना शाक्य - राज्य स्वतन्त्र रीति से अपने कुछ राजकीय अधिकारों का उपयोग न कर सकता था । उस समय के राज्यों में कोशल एक शक्तिशाली राज्य था । मगध - राज्य भी ऐसा ही था । कोशल - नरेश प्रसेनजित और मगध - नरेश बिम्बिसार सिद्धार्थ गौतम के समकालीन थे ।
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